Friday, July 29, 2011

क्या कभी बंद हो सकेगा - शिक्षक तबादला उद्योग ?


पिछले काफी वर्षो से हम सभी देखते आ रहे हैं कि एक शैक्षणिक सत्र के समाप्त होते ही प्रदेश के सभी शिक्षकों में अपने-अपने तबादलों को लेकर एक अंतहीन दौड़-धूप, भागम-भाग शुरू हो जाती है। कोई किसी सरकारी अधिकारी के यहां, कोई बिचौलिये के यहां, कोई छुटभैये राजनेता के यहां, तो कोई तगड़ी पहुंच, सिफारिश या पैसों के दम पर बड़े-बड़े नेताआंे के यहां, मंत्रियों व विधायकों के यहां - यानि, सब अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार चक्कर-दर-चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। कुछ खुश किस्मत व चालाक लोग अपने इस प्रयास में सफल होकर अपना अथवा अपने चहेतों का तबादला इच्छित स्थान पर करवा पाने में सफल हो जाते हैं, तो बाकी अपनी किस्मत को कोसते हुए अगले शैक्षणिक सत्र की प्रतीक्षा में रो-धोकर अपनी सारी मजबूरियों को सहते हुए चुपचाप अपने घर आकर बैठ जाते हैं। ‘तबादला उद्योग’ का ये तमाशा, केवल इस साल ही नहीं, हर साल और हर हालत मंे होता आ रहा है। चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो।
तबादलों के इस तमाशे ने तो अब लगभग एक सुनियोजित उद्योग की शक्ल अख्तियार ही कर ली है और यह उद्योग हर साल ही गुजरे साल से ज्यादा फलता-फूलता दिखाई देता है। इस तथ्य से हर शिक्षक, आम आदमी, राजनेता, अधिकारी व मीडिया सभी भली-भांति परिचित बने हुए हैं, लेकिन सब मौन है - आखिर क्यों? एक प्रजातांत्रिक देश/प्रदेश में आखिर हर कार्य किसी नियम, कायदे, कानून, नीति, परिपाटी या परम्परा से ही परिचालित एवं बाधित होता है - तो फिर शिक्षकों का तबादला ही इन बंधनों से मुक्त क्यों है? इसे ही केवल राजनेताओं की ‘डिजायर’ पर और उनके रहमों-करम पर ही क्यों छोड़ दिया गया है? यह ज्वलन्त सवाल हर बु(िजीवी व्यक्ति, संस्था, प्रशासन, मीडिया आदि सभी के लिए ‘विचारणीय सवाल’ नहीं है क्या? प्रदेश के प्रमुख कहे जाने वाले समाचार पत्र दैनिक भास्कर के दिनांक 28 अगस्त 2010 के अंक में इस ‘शिक्षक तबादला’ के संबंध में छपा यह समाचार- ‘अधिकारियों को 7 हजार शिक्षकों की सूची दे दी गई है जिसमें केवल डिजायर वाले लोगों के ही नाम है’, शिक्षकों के तबादला उद्योग की ही पुष्टि करता है। डिजायर नहीं तो तबादला नहीं, ऐसा क्यों? - यह एक याक्षिक प्रश्न है।
सारी उम्र प्रशासनिक कार्यालय में बिताने के पश्चात्, मैं अपने अनुभव के आधार पर पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि कुछ प्रदेशों में विशेषकर केन्द्र में रेलवे विभाग में तबादलों के लिए ठोस नीति-निर्देश बने हुए हैं, जिनका सार यह है - ;1द्ध हर कार्यालय में तबादले के लिए एक ‘नेम नोटिंग’ रजिस्टर रखा हुआ है जिसमें किसी भी इच्छुक कर्मचारी का तबादले का आवेदन आते ही उसका नाम नोट कर लिया जाता है और उसका दर्ज क्रमांक उस कर्मचारी को लिखित रूप में दे दिया जाता है। इस दर्ज क्रमांक का कोई भी अधिकारी, राजनेता उल्लंघन नहीं कर सकता। इच्छित रिक्त स्थान होने पर, बिना किसी डिजायर व सिफारिश के, उस आवेदित व दर्ज नाम कर्मचारी का स्थानान्तरण कर दिया जाता है। तो- फिर राजस्थान में ऐसा क्यांे नहीं हो सकता? ;2द्ध पारस्परिक तबादले ;डनजनंस म्गबींदहमद्ध में भी एक ही ग्रेड में कार्यरत दो कर्मचारियों की आपसी सहमति और उनका सेवा रिकॉर्ड ही मुख्य आधार होता है, इसमें भी कोई डिजायर या सिफारिश का आधार नहीं होता है। ;3द्ध पदौन्नति/पदावनति या कैडर में कमी होने पर भी तबादले किए जाते हैं। पर वो भी केवल वरिष्ठता के आधार पर, न कि किसी की डिजायर या सिफारिश पर। ;4द्ध जहां तक प्रशासनिक हित में तबादले करने का प्रश्न है तो उसके लिए कोई नियम/कायदा या डिजायर/सिफारिश नहीं होती, बल्कि प्रशासनिक हित ही सर्वोपरि होता है। लेकिन, इसका लिखिल कारण स्थानान्तरण करने वाले अधिकारी को उस कर्मचारी की फाइल पर अपने हस्ताक्षर सहित स्पष्ट रूप से लिखना होता है।
इसलिए, ऐसी ही कोई नीति या इससे मिलते-जुलते प्रादेशिक हित को ध्यान मंे रखते हुए पूरी ईमानदारी व पारदर्शिता से नीति निर्धारित कर लागू की जा सकती है। ऐसा करना प्रशासन के हित में ही होगा। जबकि, केवल डिजायर व सिफारिश के आधार पर स्थानान्तरित हुआ कर्मचारी केवल अपने राजनीतिक आका के प्रति ही समर्पित होगा, प्रशासन व कानून के प्रति कदापि नहीं। सरकारें तो बदलती रहती है लेकिन कर्मचारी तो वही रहते हैं, इसलिए स्थानान्तरण में इस डिजायर व सिफारिश वाली ‘कु-नीति’ को बदलकर ‘सु-नीति’ का निर्धारिण करना ही श्रेयस्कर होगा। वर्ना, सरकारी ढांचा तो दिन-प्रतिदिन बिगड़ ही रहा है, जो आने वाले समय में ‘आत्मघाती’ ही साबित होगा - समूची व्यवस्था के लिये।
- गिरधारी लाल वर्मा -
- ‘वर्मा निवास’, पूनम कॉलोनी, कोटा जंक्शन - 2 (राज.)

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