Saturday, October 16, 2010

संदर्भ: राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में खुलता भ्रष्टाचार "धनबल से भ्रष्टाचार को मिलती मान्यता"

20 सितम्बर 2010 के अंक में प्रकाशित
-----------------------------------------------

राष्ट्रमंडल खेल तो होंगे ही, सफल भी घोषित होंगे और निश्चित रूप से इसके समाप्त होने पर आयोजन के जिम्मेदार कुछ लोगों को पुरस्कृत भी किया जायेगा। खेलों में भ्रष्टाचार की जांच के लिए कुछ  जांच समितियां भी बना दी जाएगी और उनका ‘लिब्रहानीकरण’ कर दिया जाएगा। यानि, ये जांचें 16-17 वर्ष तक चल सकती है। अब तो इस देश में भ्रष्टाचार, घोटालों को उजागर करने वालों को ‘हंसी का पात्र’ माना जाने लगा है और ‘सूचना का अधिकार’ का प्रयोग कर तथ्य उजागर करने वालों की दिनदहाड़े हत्या होने लगी है। कहीं हत्या का अपराधी 66 बार जेल के बाहर जाता है, तो कोई 2-3 महीने के पैरोल पर घर जाकर दादी की सेवा करता है। इन सबमंें समानता का तत्व क्या है? तो वह यह है कि- इन सबमें ही धनबल से सत्ताबल, न्यायबल सब ढक जाता है।
अब तो धनबल से ही सत्ता प्राप्त की जाती है। आने वाले वर्षो में तो अब यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि- धनबली ही सत्ता पर पूर्ण, स्वच्छंद अधिकार कर लेगा। स्वतंत्रता के चार दशकों बाद ‘पंचायती राज अधिनियम’ बना। तब तक जनतंत्र की विकृति के आधार गांवों में पहुंच चुके थे। जहां जाति आधारित राजनीतिक दल अपना स्थान बना चुके थे और ग्राम जाति-समाज में बंट चुका था। बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक के बीच की दीवार पक्की कर दी गई थी। 1993 मेें पी वी नरसिम्हा राव की सरकार धन के लेन-देन से बची और केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए नज़्ाीर बन गई। गोवा, पूर्वोत्तर राज्य, झारखंड इसका भरपूर उपयोग करते रहे। झारखंड के मधु कोड़ा तो कुछ अघिक ही साहसी निकले। उन्होंने अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और सरकारी खजाने में कोई भेदभाव ही नहीं रखा, समानता रखी और खुले दिल से ‘स्वहित’ में सरकारी साधन के उपयोग का खुला उदाहरण रख दिया। वैसे अब बिहार के बहुचर्चित रहे ‘चारा घोटाले’ की चर्चा भी कौन करता है? किसे याद है झारखंड की जनता के हजारों करोड़ों की? क्या उसमें से एक पैसा भी वापस आया या आएगा? आज सारा देश ही हतप्रभ होकर देख रहा है कि- कुछ सौ करोड़ रूपये के खर्च का अनुमान लगाकर राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की स्वीकृति पाने वाले, आज कितने हजार करोड़ों का खेल प्रस्तावित आयोजन के पहले ही खेल चुके हैं? - इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। कहने को तो हर कोई पारदर्शिता की दुहाई देता है परंतु जो जानकारियां बाहर आई है वे भ्रष्टाचार तथा कदाचार के नए मानक ही स्थापित करती हैं।
आज़्ाादी के बाद उम्मीद की जा रही थी कि अब शोषण, भ्रष्टाचार, सामाजिक अपमान धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे। प्रत्येक व्यक्ति को सत्ता में भागीदारी का न केवल अधिकार ही मिलेगा, बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति का ख्याल किए बिना ही उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का बराबरी का अवसर भी हासिल होगा। लेकिन वहां से चलते हुए के.डी. मालवीय, टी.टी. कृष्णामाचारी जैसे प्रकरण सामने आए। लोगों का विश्वास बढ़ा। इन पर व्यक्तिगत आरोप लगभग नगण्य थे। फिर लोगों के सामने रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा आया जो आंध्र प्रदेश में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने दिया था। वहीं- आज केन्द्रीय मंत्रिमंडल में एक मंत्री ए0 राजा हैं, जिन पर एक लाख करोड़ से ऊपर के भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इनके लिए कहा तो यह भी जाता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें अपनी नई वर्तमान सरकार में नहीं लेना चाहते थे मगर सत्ता के समीकरणों ने उनको मजबूर कर दिया। परिणामस्वरूप, ए0 राजा न केवल मंत्री है बल्कि उनका विभाग भी पहले वाला ‘सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी’ ही रखा गया है, जिसे आज तक भी नहीं बदला जा सका है। ऐसे में, यदि संविधान द्वारा प्रद्धत्त विशेषाधिकारों का उपयोग यदि हमारे प्रधानमंत्री नहीं कर पाते हैं तो देश की जनता तथा युवा वर्ग को जो संदेश जाता है, उसका असर तो लंबे समय तक रहेगा ही।
आज, उसी युवा वर्ग के प्रोत्साहन तथा मनोबल को बढ़ाने के लिए राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हो रहा है। लेकिन, आज दिन-रात स्कूल-कॉलेजों तथा घरों में हर कोई इन खेलों की नहीं, इनके आयोजन मेें हो रहे भ्रष्टाचार के नए-नए तरीकों की बात कर रहा है। यह चर्चा इस पर भी हो रही है कि भ्रष्टाचार तो सदा रहा है, लेकिन आज के इन भ्रष्टाचारियों के चेहरों पर शिकन तक नहीं आती है। कारण साफ है- वे जानते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। यदि वे सत्ता में हैं तब तो मंत्री, मुख्यमंत्री या सरकार को सहारा देने वाले बन सकते हैं और तब उन पर लगे आरोप ठंडे बस्ते में चले जायेंगे। इस तरह से, हमारे सामाजिक मूल्यों पर जनतांत्रिक मूल्यों के ट्ठास का जबरदस्त प्रभाव पड़ा है और इसी कारण से चुने हुए प्रतिनिधियों की संपत्ति का ब्यौरा भी पांच साल में कई गुना बढ़ जाता है।
सत्ता के ऊंचे पायदानों ने धनबल बढ़ाने के लिए जो कुछ किया है उसका खुला प्रदर्शन आज कॉमनवेल्थ खेलों मंे हुआ है। कहा जा रहा है कि इस भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को राष्ट्रहित में खेलों के सफल आयोजन तक चुप रहना चाहिए। भ्रष्टाचार के, धनबटोरने में बेशर्मी के ये आरोप तो ऐसे है कि- इस आयोजन से जुड़े अनेक लोगों को जेल में होना चाहिए। आज इस आयोजन ने सारे देश में आक्रोश की स्थिति पैदा कर दी है। इसमें युवा पीढ़ी विशेष रूप से आहत है, क्योंकि यह सब कुछ युवाओं को ही प्रोत्साहित करने के नाम पर हो रहा है और नैतिक पतन का यह एक ठोस उदाहरण उनके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। इसलिए, अब युवा पीढ़ी ही इस हो रहे ‘नैतिक पतन’ की स्थिति से देश को बाहर निकालने का रास्ता ढूंढ सकती है। आज नहीं तो कल, ऐसा ही होगा। विचारणीय स्थिति है कि- एक तरफ मंहगाई, करोड़ों इंसानों को भूखा सुला रही है, तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों में अधिकाधिक धन बटोरने की होड़ लगी है। महात्मा गांधी आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति को याद करते थे। जबकि आज के नेता चाहते हैं कि लोग राष्ट्रमंडल खेलों में देश की प्रतिष्ठा पर बट्टा लगाने वाले गुनाहगारों के कारनामे भुला दें। लेकिन- अब ऐसा अधिक दिन चलने वाला नहीं है।

(लोकाचार में भ्रष्टाचार की प्रतिष्ठा के कारणों की पड़ताल कर रहे हैं लेखक-चिंतक जगमोहन सिंह राजपूत। साभारः साहित्य-पन्ना, जागरण याहू कॉम)

No comments:

Post a Comment