Thursday, October 28, 2010

‘राजस्थान की समकालीन हिन्दी कविता’ विषयक पर दो दिवसीय लेखक सम्मेलन

श्रीडूँगरगढ़ (विजय महर्षि)। राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के सौजन्य से ‘राजस्थान की समकालीन हिन्दी कविता’ पर आधारित दो दिवसीय लेखक सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूँगरगढ़ द्वारा 8 व 9 अक्टूबर 2010 को समिति भवन में आयोजित हुआ। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर गंगाराम जाखड़ ने कहा कि जब तक हमारी काव्य संवेदना लोक-संवेदना में एकाकार नहीं होगी तब तक वह जन समर्थन प्राप्त नहीं कर पायेगी। समकालीन कविता में अंतरण बेचैनी आज के जीवन के बीच मनुष्य के लिए स्पेश तलाश करती दिख रही है। मुख्य अतिथि हरीश करमचंदानी ने वैश्विक अर्थवाद की समस्याओं का जिक्र करते हुए समकालीन कवि धर्म को रेखांकित किया। परिचयों के प्रथम सत्र में राजस्थान की समकालीन हिन्दी कविता में लोक जीवन विषय पर पत्रवाचन डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने किया। सत्राध्यक्ष भंवरसिंह सामौर ने लोक संस्कृति और लोक संवेदना को व्याख्यापित किया। अन्य सभी सहभागियों द्वारा विषय पर गंभीर विमर्श किया गया। 
दूसरे दिन के विचार सत्र में प्रथम सत्र में राजस्थान की समकालीन हिन्दी कविता संवेदना और शिल्य विषय पर पत्रवाचन डॉ. उम्मेद गोठवाल ने किया, जिसमें उन्होंने कहा कि समकालीन कवियों की संवेदना में मानव जीवन एवं प्रकृति के विभिन्न पक्षों का विस्तार है। अध्यक्ष डॉ. नरपत सोढ़ा ने कहा कि समकालीन हिन्दी कविता का आधार घुटन से संत्रस्त मानव है। हरीश करमचंदानी ने कहा कि छंद मुक्तता कवि को आमजन से दूर कर रही है। अगले विचार सत्र में समकालीन हिन्दी कविता की परम्परा एवं विकास पर पत्रवाचन डॉ. गजादान चारण ने किया तथा सभी सहभागियों ने अपने विचार रखे। समारोह के समाचार सत्र में मुख्य अतिथि अशोक माथुर ने कविता के साथ हो रहे बाजारवाद के षडयंत्रों से कवि को सावधान रहने का संकेत दिया। साहित्यकार सत्यदीप ने कहा कि रोबोट एवं कम्प्युटर युग की विवशता में संवेदना को जीवित रखने का उत्तरदायित्व कवि पर ज्यादा हो गया है। कार्यक्रम का संचालन रवि पुरोहित ने किया।
इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान हनुमानगढ़ के कवि दीनदयाल शर्मा की कृतियों का लोकार्पण एवं समकालीन कवियों की कविताओं पर आधारित राजूराम बिजारणिया की चित्र प्रदर्शनी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक कवियों ने अपनी काव्य प्रस्तुतियां दी।    

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