Sunday, October 10, 2010

जनप्रतिनिधियों की अंतरात्मा

20 सितम्बर 2010 के अंक में प्रकाशित
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हमारे सांसदों ने स्वयं संसद में बैठकर अपने वेतन और भत्तों में 300 प्रतिशत की वृद्धि कर ली है। उनका कहना है कि उन्हें जो वेतन-भत्ते मिलते हैं, वे अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम हैं। ये अपनी तुलना उन देशों के सांसदों से करते हैं जो विकसित और समृद्ध देश हैं। वहां के आमजन उस गरीबी और कुपोषण में नहीं जीते हैं जिसमें इस देश के अधिसंख्य लोग जीते हैं। एशिया विकास बैंक की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार- भारत के 75 फीसदी लोग निर्धन-मध्य वर्ग में आते हैं जिनकी मासिक आय 1035 रूपये से भी कम है। निम्न-मध्य वर्ग, जिसकी मासिक आय 1035 से 2070 रूपये के बीच है, मैं लगभग 22 करोड़ लोग हैं। 2070 से 5177 मासिक आय वर्ग वाले मध्य-मध्य वर्ग के लोगों की संख्या 5 करोड़ से कम है। उच्च-मध्य वर्ग के लगभग 50 लाख लोगों की मासिक आय 10 हजार रूपये का आंकड़ा छूती है। केवल 10 लाख लोग , जिन्हें अमीर समझा जाता है, की मासिक आय 10 हजार रूपये से अधिक है।
इस तरह से, देश के सांसद जो वेतन और भत्ते प्राप्त करते हैं, उसके अनुसार- प्रत्येक सांसद की मासिक आय डेढ़ लाख रूपये मासिक से अधिक होगी। उन्हें सांसद होने के नाते जो विभिन्न सुविधाऐं प्राप्त होती है उनमें दिल्ली में मुफ्त आवास, 50 हजार यूनिट बिजली व 4 हजार किलोलीटर पानी, डेढ़ लाख मुफ्त कॉल सहित दो टेलीफोन, दो मोबाइल फोन, पति या पत्नि सहित देश के किसी भी भाग की 34 बार मुफ्त हवाई यात्रा, रेलवे के वातानुकूलित डिब्बे में असीमित यात्राएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी अनेक सुविधाएं भी हैं जिन पर आम लोगों को हजारों रूपये खर्च करने पड़ते हैं। फिर भी, अनेक सांसदों का यह कहना है कि उनका वेतन सरकार के सचिव स्तर के किसी भी अधिकारी के वेतन से एक रूपया अधिक होना चाहिए। लेकिन यह एक बेहूदा तर्क है। क्योंकि सचिव स्तर के अधिकारी का वेतन आयकर मुक्त नहीं होता, जबकि सांसद यह चाहते हैं कि उनके वेतन पर किसी भी प्रकार का ‘कर’ (टैक्स) ना लगे। इसी प्रकार से, सरकारी अधिकारियों को मुफ्त आवास, बिजली, पानी, टेलीफोन सेवा, हवाई अथवा रेल सेवा की ऐसी सुविधायें नहीं मिलती, जो इन जनसेवी/जनप्रतिनिधि कहे जाने वाले सांसदों को हासिल है। किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी अन्य साधन से धन अर्जित करने का अधिकार नहीं होता, किन्तु सांसदों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होता।
हमारे भारतीय सांसदों में करीब 300 से अधिक करोड़पति और अरबपति है। एक सांसद यदि पूरी अवधि तक संसद का सदस्य रहता है तो उसकी संपत्ति में चार-पांच गुणा की बढ़ोत्तरी हो जाती है। वही, सांसदों के वेतन को लेकर संसद के सभी सदस्यों के बीच जिस प्रकार की एकता दिखाई दी है, वह भी अद्भुत है। मात्र वामपंथी सदस्यों ने इस वेतन वृद्धि का विरोध अवश्य किया है और उन्होंने इस प्रश्न पर सदन से बहिर्गमन ;वाकआउटद्ध भी किया है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले संविधान में संशोधन करके उसमें ‘समाजवादी’ जोड़ा गया था। किन्तु अपने आपको समाजवादी कहने वाले सांसदों ने वेतन-वृद्धि में जितनी लोलुपता और दूराकांक्षा प्रदर्शित की है, उतनी किसी और ने नहीं की। बल्कि वेतन बढ़ाये जाने के इस अभियान में अपने आपको समाजवादी कहे जाने वाले नेता लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव सबसे आगे रहे हैं। जबकि, मुलायम सिंह यादव तो उस पार्टी के अध्यक्ष है जिनका नाम ही ‘समाजवादी’ है। वहीं, हमारे इस भारत देश में आ रहे समाजवाद का हाल यह है कि- यहां पर 45 प्रतिशत से भी अधिक लोग 20 रूपये रोज से कम में गुजारा करते हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के अंतर्गत किसी भी बेरोजगार मजदूर को वर्ष में 100 दिन का काम और 100 रूपये प्रतिदिन दिए जाने का प्रावधान है। जबकि, राजस्थान से प्राप्त एक रिपोर्ट के अनुसार- वहां पर इस योजना के अंतर्गत लगाए गए मजदूरों को मात्र एक रूपये से 13 रूपये प्रतिदिन की ही मजदूरी मिली, और शेष राशि बिचौलिये खा गये। अफसोस, कि संसद में बैठने वाले जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर भी नहीं है कि देश में कुपोषण के शिकार होते बच्चों की संख्या करोड़ों में है, जो असमय ही मौत के गाल में समा जाते हैं। बस्तर तथा अन्य आदिवासी क्षेत्रों के लोग, पास के शहरों में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में मजदूरी के लिए जाते हैं। इन लोगों के लिए इस प्रकार की रिपोर्ट भी आई है कि उनमें से कुछ लोग तो रास्ते में ही भूख से तड़प कर मर गए। लेकिन, इन अमानवीय बने हुए सांसदों को इन सब मामलों से कोई सरोकार नहीं है। इनकी मानसिकता तो यह है कि जब देश में चहुं ओर ही लूट-खसोट चल ही रही है तो वे भी इस सुनहरे ‘लूट के अवसर’ को हाथ से क्यों जाने दें।
(सांसदों की वेतन वृद्धि पर कुछ खास सवाल उठाते वरिष्ठ लेखक व टिप्पणीकार। साभारः साहित्य-पन्ना, जागरण याहू कॉम)

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