Tuesday, October 26, 2010

लघु व मध्यम श्रेणी के पत्र-पत्रिकाओं को ‘राहत व सहयोग’ देने में कमजोर क्यों बने हुए हैं केन्द्रीय सरकार प्रमुख?

सम्पादकीय.......
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५ और २० अक्टूबर के अंक में प्रकाशित
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हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को असहाय व कमजोर समझें अथवा भ्रष्टाचारियों के सहयोगी व संरक्षक समझें?

माननीय प्रधानमंत्री जी, यदि आप अथवा आपके प्रवक्ता बने हुए दूत हमारी इस आवाज को सुन रहे हैं तो हम खुले-खुले रूप से यह कह रहे हैं कि- हमें आपकी सरकार में कोई हिस्सेदारी या भागीदारी नहीं चाहिए तथा हमें हमारी मांग अनुरूप ‘राहत व सहयोग’ दिये जाने की घोषणा करने से भी आपकी सरकार पर कोई विशेष ‘आर्थिक भार’ भी नहीं पड़ने वाला है। लेकिन, इस घोषणा से आपकी सरकार को अपनी इच्छानुरूप चलाने का दम भरने वाले भारी वेतन व सुविधाओं के भोगी बने हुए मक्कार व भ्रष्ट ‘सफेद हाथी’ समान नौकरशाहों का ‘मनमानी भरा चक्रव्यूह’ अवश्य ही टूटेगा। माननीय, हम लघु व मध्यम श्रेणी समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की समस्याऐं सीधी-सीधी भारतीय डाक विभाग तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यरत बने हुए आर.एन.आई और डी.ए.वी.पी. से संबंधित बनी हुई है, जिनका निराकरण भी सुगमता से संभव है। चूंकि, इन संबंधित विभागों में बनी हुई प्रमुख अधिकारियों की लंबी फौज की कार्यशैली व सोच ‘लोकतंत्रीय-विरोधी’  है, इसलिए हमारी समस्याओं का निराकरण भी तब तक संभव नहीं दिखाई दे रहा है जब तक कि आप अपने स्तर से ही हमारी समस्याओं को समझकर उनका निराकरण करने के लिए प्रभावी कार्यवाही नहीं करेंगे। क्योंकि, इन दोनों केन्द्रीय विभागों के संबंधित मंत्रीगण यथा- युवा नेता सचिन पायलेट और युवक कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती अम्बिका सोनी भी संभवतः अपने-अपने विभागों के नौकरशाहों के समक्ष कमजोर ही बने हुए दिखाई दे रहे हैं।
माननीय प्रधानमंत्री जी, मक्कार व भ्रष्ट नौकरशाहों के आगे कमजोर बने रहने वाली सरकार की दयनीय स्थिति पर, देश के सर्वहारा वर्ग ;कमजोर वर्गद्ध के लिए जीवन भर पूरी जीवटता के साथ संघर्षशील रहने वाले एवं गत दिनों ही 1 अक्टूबर 2010 को दिवंगत हुए हमारे प्रिय आत्मीयजन साहित्यकर्मी, नाट्यकर्मी व श्रमिक नेता कॉमरेड शिवराम जी स्वर्णकार की हमारी ‘लोकतंत्रीय कही जाने वाली व्यवस्था’ पर रचित इस व्यंग्य भरी काव्यात्मक ‘अनुभवी सीख’ को, आपको व आपकी सरकार एवं आपकी कांग्रेस पार्टी को समर्पित कर रहे हैं। शायद, आप लोगों की सोई-खोई आत्माओं को यह ‘अनुभवी सीख’ जागृत कर सकें, जो यदि ‘जीवन्त आत्मायें’ हैं तो। ‘मृत समान पड़ी-बनी आत्माओं का तो कोई कर भी क्या सकता है। तो यह है दिवंगत कॉमरेड शिवरामजी की व्यंग्य भरी काव्यात्मक ‘अनुभवी सीख’: 
‘‘एक चुप्पी हजार बलाओं को टालती है, चुप रहना भी सीख, सच बोलने का ठेका, तूने ही नहीं ले रखा। / दुनिया के फटे में टांग अड़ाने की, क्या पड़ी है तुझे, मीन-मेख मत निकाल, जैसे सब निकाल रहे हैं, तू भी अपना काम निकाल, अब जैसा भी है, यहाँ का तो यही दस्तूर है, जो हुजूर को पसंद आए वही हूर है। / नैतिकता-फैतिकता का चक्कर छोड़, सब चरित्रवान भूखों मरते हैं, कविता-कहानी सब व्यर्थ है, कोई धंधा पकड़, एक के दो - दो के चार बनाना सीख, सि(ांत और आदर्श नहीं चलते यहाँ, यह व्यवहार की दुनिया है, व्यावहारिकता सीख, अपनी जेब में चार पैसे कैसे आएँ, इस पर नजर रख। / किसी बड़े आदमी की दुम पकड़, तू भी किसी तरह बड़ा आदमी बन, फिर तेरे भी दुम होगी, दुमदार होगा तो दमदार भी होगा, दुम होगी तो दुम उठाने वाले भी होंगे, रुतबा होगा, धन-धरती, कार-कोठी सब होगा। / ऐरों-गैरों को मुहँ मत लगा, जैसों में उठेगा बैठेगा, वैसा ही तो बनेगा, जाजम पर नहीं तो भले ही जूतियों में ही बैठ, पर बड़े लोगों में उठ-बैठ। / ये मूँछों पर ताव देना, चेहरे पर ठसक और चाल में अकड़, अच्छी बात नहीं है, रीढ़ की हड्डी और गरदन की पेशियों को, ढीला रखने का अभ्यास कर। / मतलब पड़ने पर गधे को भी, बाप बनाना पड़ता है, गधों को बाप बनाना सीख। / यहाँ खड़ा-खड़ा, मेरा मुहँ क्या देख रहा है, समय खराब मत कर, शेयर मार्केट को समझ, घोटालों की टेकनीक पकड़, चंदे और कमीशन का गणित सीख। / कुछ भी कर, कैसे भी कर, सौ बातों की बात यही है, कि अपना घर भर, हिम्मत और सूझ-बूझ से काम ले, और- भगवान पर भरोसा रख।’’
माननीय प्रधानमंत्री जी, दिवंगत कॉमरेड शिवरामजी की इसी जीवटता भरे संघर्षमयी रहे जीवन-सफ़र पर हमारे कोटा के ही युवा रचनाकार ओम नागर ‘अश्क’ की यह काव्य-रचना ‘‘अब तुम नहीं दिखोगें कॉमरेड’’ भी आपको सबको समर्पित करते हुए प्रस्तुत है, संभवतः युवा कवि की यह रचना भी आपको जागृत अवस्था में लाने में सहयोगी बन सकें - 
‘‘अब तुम नहीं दिखोगें कॉमरेड, इस महानगर होते शहर की कलेक्ट्रेट के सामने, शोषण और बेगारी के खिलाफ, आवाज बुलंद करते हुए। / तुम जब तक रहें कॉमरेड, जिंदादिल रहें / इस पूंजीवादी व्यवस्था का ताना-बाना, उधेड़कर दिखाते रहें / कानों से बहरी, आंखों से अंधी, सिर्फ सहमति में सिर हिलाती दुनिया को। / तुम चले गए कॉमरेड अचानक, अहिंसा के पुजारी की जयंती से, एक दिन पूर्व, चलो सुन लिया तुमने भी जाने से ठीक पहले, मंदिर और मस्जिद की अय्यारी का फैसला, मुझे नहीं पता, क्या खंगाला होगा तुमने, साठ साल सुखर््िायों में धकेली गई, अयोध्या के इतिहास में। / अब तुम नहीं दिखोगें कॉमरेड, देश की भोली जनता को पागल करते हुए / गांव, कस्बे, शहर के किसी भी नुक्कड़ पर, चीख-चीख कर क्रांति का उद्घोष करते हुए / आधी रात सुनसान सड़क से घर लौटते हुए, दूर बस्ती के छप्पर में टिमटिमाती ढीपरी की लौ पड़ गई है मंद / कल ही एकजुट हुए मेहनतकश, आज ताकने लगे एक-दूजे का मुंह। / चिंता न करो कॉमरेड, जमीन के लिए भैरू ने उठा लिया है लट्ठ, ‘दुलारी की मां’ ने- तोड़ दिए हैं ऊंच-नीच के बंधन / ‘खुद साधो पतवार’ - ‘साथियों कुछ तो हाथ गहो’, कहते-कहते ओझल हुए कॉमरेड / अब तुम्हारे ‘पुनर्नव’ का, नहीं हो सकता कोई ‘विकल्प’। / अभी लड़ाई जारी है, उन तमाम घुसपैठियों के विरू(, जो पिछले तिरेसठ साल से गटक रहे हैं, हमारे-तुम्हारे सबके हिस्से का ‘गटक चूरमा’। / आज तुम्हारे नहीं रहने के बावजूद, हर सिम्त कौंधता है, तुम्हारा मुस्कराहट भरा चेहरा / देखना कॉमरेड, ‘माटी जरूर मुलकेगी एक दिन’ - ‘एक गांव की कहानी’, ‘राधेया की कहानी’, ‘सेज की सूली’ पर अब नहीं चढ़ेगा किसान / तुम्हारी तमाम अभिव्यक्तियों मेें, जनता एक न एक दिन, जरूर तलाशेगी ‘मुक्ति का विकल्प’ / ऐसे में जहां कहीं से भी देख सको, तो देखना और कहना- हाँ वाकई ‘जनता पागल हो गई’ है आज।।’’
माननीय प्रधानमंत्री जी, हम आपका ध्यान शहीद भगतसिंह द्वारा अपनी शहादत के ठीक तीन दिन पहले 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को लिखी इस चिट्ठी की ओर भी दिलाना चाहते हैं, जो हमारी लोकतंत्रीय व्यवस्था के नाम पर चल रही ‘अ-लोकतंत्रीय व्यवस्था’ ;जिसे ‘हिंसक-तंत्रीय व्यवस्था’ कहा जाये तो शायद उचित होगाद्ध को देखते हुए आज भी उतनी ही सारगर्भित है जितनी कि तब थी। शहीद भगतसिंह द्वारा तब पंजाब के गर्वनर को लिखी गई चिट्ठी इस प्रकार से है  - 
‘‘हम यह स्पष्ट घोषणा करें कि लड़ाई जारी है। और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक हिन्दुस्तान के मेहनतकश इंसानों और यहां की प्राकृतिक सम्पदा का कुछ चुने हुए लोगों द्वारा शोषण किया जाता रहेगा। ये शोषक केवल ब्रिटिश पूंजीपति भी हो सकते हैं, ब्रिटिश और हिन्दुस्तानी एक साथ भी हो सकते हैं, और केवल हिन्दुस्तानी भी। शोषण का यह घिनौना काम ब्रिटिश और हिन्दुस्तानी अफसरशाही मिलकर भी कर सकती है, और केवल हिन्दुस्तानी अफसरशाही भी कर सकती है। इनमें कोई फर्क नहीं है। यदि तुम्हारी सरकार हिन्दुस्तान के नेताओं को लालच देकर अपने में मिला लेती है, और थोड़े समय के लिए हमारे आंदोलन का उत्साह कम भी हो जाता है, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि हिन्दुस्तानी आंदोलन और क्रांतिकारी पार्टी लड़ाई के गहरे अंधियारे में एक बार फिर अपने-आपको अकेला पाती है, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लड़ाई फिर भी जारी रहेगी। लड़ाई फिर से नये उत्साह के साथ, पहले से ज्यादा मुखरता और दृढ़ता के साथ लड़ी जाएगी। लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी, जब तक सोशलिस्ट रिपब्लिक की स्थापना नहीं हो जाती। लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी, जब तक हम इस समाज व्यवस्था को बदल कर एक नयी समाज व्यवस्था नहीं बना लेते। ऐसी समाज व्यवस्था, जिसमें सारी जनता खुशहाल होगी, और हर तरह का शोषण खत्म हो जाएगा। एक ऐसी समाज व्यवस्था, जहां हम इंसानियत को एक सच्ची और हमेशा कायम रहने वाली शांति के दौर में ले जाएंगे..... पूंजीवादी और साम्राज्यवादी शोषण के दिन अब जल्द ही खत्म होंगे। यह लड़ाई न हमसे शुरू हुई है, न हमारे साथ खत्म हो जाएगी। इतिहास के इस दौर में, समाज व्यवस्था के इस विड्डत परिप्रेक्ष्य में, इस लड़ाई को होने से कोई नहीं रोक सकता। हमारा यह छोटा सा बलिदान, बलिदानों की श्रृंखला में एक कड़ी होगा। यह श्रृंखला मि. दास के अतुलनीय बलिदान, कॉमरेड भगवतीचरण की मर्मांतक कुर्बानी और चंद्रशेखर आजाद के भव्य मृत्युवरण से सुशोभित है।’’ (साभार: प्रो. चमनलाल, प्राध्यापक, जे.एन.यू., नई दिल्ली द्वारा आलेखित ‘‘भगत सिंह की याद में - उनकी शहादत के 75 वर्ष पूरे होने पर’’ लेखऋ अनुवादकः डॉ. ;सुश्रीद्ध जया मेहता एवं सुधीर साहू)
तब, उसी 20 मार्च के दिन ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी दिल्ली की एक सभा में कहा, ‘‘आज भगत सिंह इंसान के दर्जे से ऊपर उठकर एक प्रतीक बन गया है। भगत सिंह क्रांति के उस जुनून का नाम है, जो पूरे देश की जनता पर छा गया है।’’ वहीं, कांग्रेस पार्टी का इतिहास लिखने वाले बी. पट्टाभिरमैया के अनुसार- ‘‘इस दौरान भगत सिंह और उनके साथियों की लोकप्रियता उतनी ही थी, जितनी महात्मा गांधी की।’’
माननीय प्रधानमंत्री जी, हमें नहीं मालूम कि आपको शहीद भगतसिंह के बारे में और उनके राष्ट्रवादी चिंतन के बारे में कितनी जानकारी है, लेकिन आज की भ्रष्ट व मक्कार नौकरशाही की ‘मनमानी कार्यशैली’ के बारे में निश्चित ही आपको पूरी जानकारी होगी। आखिर- आप भी एक उच्च पदस्थ नौकरशाह रहे हैं और आज भी आपकी पहचान एक कुशल अर्थशास्त्री के रूप में बनी हुई है। यह अलग बात है कि अब आपकी यह ‘अर्थशास्त्री कुशलता’ असफल सी होती जा रही है, कारण आप ही जाने। 
खैर, तो माननीय प्रधानमंत्री जी, हमारे द्वारा किये गये उक्त ‘विशेष उल्लेख’ (दिवंगत कॉमरेड शिवरामजी और युवा रचनाकार ओम नागर ‘अश्क’ की काव्य-रचना तथा शहीद भगतसिंह की चिट्ठी) का उद्देश्य यही है कि- हम लघु व मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र/पत्रिकाओं की समस्याऐं भी देश के लघु व मध्यम श्रेणी के उत्पीड़ित बने हुए आमजनों की समस्याओं की ही प्रतीक है। इसलिये आपसे और आपके सरकारी तंत्र से हमारा यही विनम्र आग्रह है कि- ड्डपया आप, हमारी समस्याओं का अवलोकन कर शीघ्रातिशीघ्र ही संबंधित विभागों/मंत्रालयों (भारतीय डाक विभाग तथा सूचना एवं प्रसारण विभाग) से उनका स्थाई निराकरण कराये जाने के लिए, अपने स्तर से प्रभावी कार्यवाही कर हमें ‘राहत व सहयोग’ किये जाने का श्रम करें। कृपया आप, हमारी समस्याओं के बारे में संबंधित विभागों/मंत्रालयों को ‘‘पाक्षिक समाचार सफ़र’’ की ओर से भेजे हुए ‘ज्ञापन पत्रों’ (जिनके संबंध में आपको भी ज्ञापन-पत्र भेजे हुए हैं) को और उन पत्रों पर इन संबंधित विभागों/मंत्रालयों द्वारा की गई ‘नकारात्मक कार्यवाही’ का अवलोकन भी कर सकते हैं - ताकि, आपके समक्ष भी समूची वस्तुस्थिति स्पष्ट हो सकें। साथ ही, आप भी यह समझ सकें कि- हमारी मांगें साफ-सुथरी है, जो नौकरशाहों की गलत व मनमानी भरी कार्यनीति के खिलाफ है तथा हमारी मांगों को स्वीकार किये जाने से सरकार पर किसी भी तरह का कोई विशेष आर्थिक-भार नहंी पड़ने वाला है। क्योंकि, इन संबंधित विभागों से ‘आरटीआई’ (सूचना का अधिकार) के तहत हमारे द्वारा चाही गई जानकारी के संदर्भ में हमंे जिस तरह की भ्रामकपूर्ण व आधी-अधूरी जानकारियां प्राप्त हो रही है, वह भी हास्याप्रद एवं इन संबंधित नौकरशाहों की ‘मक्कारी’ व ‘अयोग्यताओं’ की ही प्रतीक है। (प्रधानमंत्री जी, ‘आरटीआई’ के तहत हमें प्राप्त हुए पत्रों का आगामी अंकों में प्रकाशन करेंगे।)
अतः माननीय प्रधानमंत्री जी, हम आशा करते हैं कि आप, हमारी समस्याओं के निराकरण में, शीघ्र ही सकारात्मक व प्रभावी कार्यवाही किये जाने का प्रयास करेंगे और यथासंभव आपके स्तर से होने वाली कार्यवाही से हम भी अवगत हो सकेंगे। साथ ही, हम, आपसे यह भी आग्रह करते हैं कि- निकम्मी व भ्रष्ट व्यवस्था से पीड़ित बने हुए आमजनों की समस्याओं का समाधान ‘ऑपरेशन ग्रीनहंट’ से संभव नहीं हो सकेगा, बल्कि समस्याओं के कारणों को सही अर्थों मंे तलाश कर उनका साफ नीयत से समाधान करना होगा। इस संदर्भ में विचारक-लेखक अमलेन्दु उपाध्याय ने अपने आलेख ‘कोबाड़ का रास्ता’ में सच ही कहा है-  ‘‘नक्सलवाद इस देश में लगभग तीन दशक से भी ज्यादा समय से पनप रहा है और इसका प्रभाव कम होने के बजाय लगातार बढ़ता ही गया है। किसी भी आतंकवादी आन्दोलन के पूरे दौर में जितने आतंकवादी मारे जाते होंगे उससे कहीं ज्यादा नक्सली हर साल पुलिस के हाथों मारे जाते हैं। अकेले छत्तीसगढ़ में एक वर्ष में चार सौ के आसपास कथित नक्सली मारे गए हैं। लेकिन कोई तो बात है जो नक्सलवाद का जुनून बढ़ता ही जाता है। दिल्ली की गद्दी पर बैठे हुक्मरानों और पूंजीवादी रूझान के बुद्धिजीवियों के माथे पर इस प्रश्न को लेकर चिंता की लकीरें गहरी हो गई है कि आखिर क्या बात है कि कोबाड़ गांधी जैसे लोग अपने कैरियर, घरबार और व्यापार को छोड़कर इस तरह के आन्दोलन से न केवल जुड़ जाते हैं बल्कि अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। ताज्जुब इसलिए भी होता है कि अतिवामपंथी आंदोलन से जुड़ने वाले लोग न तो धर्म विशेष के पहरूए हैं, न जेहादी हैं, न जातिवादी आन्दोलन से निकलकर आए हैं। फिर उन्हें यह जुनून कहां से मिलता है? यहां यह भी याद रखना चाहिए कि कोबाड़ गांधी इस तरह का पहला उदाहरण नहीं है, जिन्होंने मार्क्सवाद के सिद्धान्तों के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया हो। इससे पहले भी ईएमएस नंबूदरीपाद जैसे लोग हुए हैं जिनका राजघराने से ताल्लुक रहा और उनकी जमींदारी देश में सर्वाधिक मालगुजारी वसूलने वाली रियासत समझी जाती थी। लेकिन नंबूदरीपाद अपनी सारी संपत्ति कम्युनिस्ट पार्टी को सौंपकर पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए थे। कोबाड़ गांधी के जुनून को एक और तरीके से समझा जा सकता है। गौतम बुद्ध भी अपना सारा राजपाट छोड़कर दुख के निदान की तलाश में ही भिक्षु बन गए थे। लेकिन बुद्ध का रास्ता अध्यात्म का था, पलायन का था और कोबाड़ ने जो रास्ता चुना वह है तो बुद्ध के समानान्तर ही, लेकिन यह विचार का रास्ता है, संघर्ष का रास्ता है - पलायन का नहीं।’’  आखिर में- हम अपने इस संपादकीय को शहीद भगत सिंह के शब्दों में ‘लड़ाई जारी है’ के संदेश के साथ तथा सर्वहारा वर्ग के महाकवि फैज़  अहमद फैज़  सा. की इन काव्य-पंक्तियों के साथ विराम दे रहे हैं - ‘‘जब कभी बिकता है बाज़ार में मजदूर का गोश्त / शाह राहों पे गरीबों का लहू बहता है / आग सी सीने में रह रह के उबलती है न पूछ / अपने दिल पर मुझे काबू ही नहीं रहता है।’’ (समाप्त) 
विशेष सूचना: ‘सफ़र’ पाठकों को सूचित किया जा रहा है कि ‘‘समाचार सफ़र’’ के आगामी अंकों से महात्मा गांधी लिखित पुस्तक ‘‘हिन्द स्वराज’’ और शहीद भगत सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’’ का किश्तवार प्रकाशन भी आरम्भ कर रहे हैं। 


- जीनगर दुर्गाशंकर गहलोत
सम्पादक
मो. 09887232786

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