Saturday, October 23, 2010

संघ-भाजपा एवं बसपा समर्थित बने हुए जीनगर सदस्यों के नाम जीनगर गहलोत का अपील-पत्र

गत कुछ समय से संघ व भाजपा समर्थित बने हुए हमारे जीनगर समाज सदस्यों की ओर से हमको यह सुनने को मिलता रहता है कि हम अपने इस समाचार पत्र ‘पाक्षिक समाचार सफ़र’ में हिन्दुत्ववाद व उनके पैरोकारों के खिलाफ यानि राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ;आर.एस.एस.द्ध व भाजपा के खिलाफ कुछ ना कुछ सामग्री प्रकाशित करते रहते हैं। इसी तरह से बसपा समर्थक बने हुए हमारे जीनगर सदस्यों को भी यह शिकायत बनी हुई है कि हम एकमात्र दलितनेत्री कुमारी मायावती के खिलाफ भी कुछ ना कुछ प्रकाशित करते रहते हैं। चूंकि समर्थक है और समर्पण भाव से समर्पित है तो शिकवो-शिकायत का होना वाजिब ही है। लेकिन, संघ-भाजपा और बसपा समर्थित हमारे जीनगर समाज सदस्यों से यही विनम्र आग्रह है कि वे अपने-अपने समर्थित दलों के प्रमुखों से हमारे निम्न सवालों के जवाब लेकर हमें अवश्य भिजवाये, ताकि हम भी यह समझ सकें कि ये हिन्दुत्ववादी पैरोकार सवर्ण व दलित हिन्दु वर्ग में से कौन-से हिन्दुओं की पैरोकारी कर रहे हैं और दलित-हितैषी होने का दम भरने वाली दलितनेत्री के शासन में दलित कितने सुरक्षित व असुरक्षित है। मात्र, अंध-समर्थक बनने से न तो दलितों का भला हुआ है और ना ही कभी होने की संभावना ही है। हमारे सवाल ये हैं -
(1) कि संघ व भाजपा की सोच में ‘हिन्दु’ का तात्पर्य कौन-से वर्ग के हिन्दुओं से है - सवर्ण कहे जाने हिन्दुओं से अथवा दलित कहे जाने वाले हिन्दुओं से अथवा इन दोनों ही तरह के हिन्दुओं से? और, संघ की प्रथम पंक्ति के प्रमुख सदस्यों में आज तक भी संघ समर्थित व समर्पित बने हुए किसी ‘दलित सदस्य’ को सम्मानीय स्थान क्यों नहीं मिल सका? क्या ये संघ समर्थित व समर्पित दलित सदस्य इस योग्य नहीं हैं या फिर इनके लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ खींची हुई है?
(2) कि हिन्दु व मुस्लिम वर्ग के सदस्यों में किसी भी निज कारणवश होने वाले आपसी विवाद को ‘हिन्दुओं पर अत्याचार’ बताकर समूचे माहौल को साम्प्रदायिकता का रंग देने का प्रयास करने वाले संघ व भाजपा संगठन के प्रमुखजन तब खामोश क्यों बने रहते हैं जब किसी सवर्ण सदस्य/परिवार द्वारा दलित सदस्य/परिवार के साथ अत्याचार किया जाता है? तब इनका ‘हिन्दुआंे पर अत्याचार’ का नारा क्यों खामोश बना रहता है?
(3) कि राम मंदिर निर्माण के नाम अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर देश भर को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने वाले कतिपयी हिन्दुवादी संगठनों व भाजपा के हिन्दुत्ववादी मुखौटे बने हुए ‘रथयात्री’ लालकृष्ण आडवाणी आदि जैसे नेताओं द्वारा - क्या दलितों के पूवर्जो द्वारा निर्मित कराये हुये और सवर्णो द्वारा हथियाये हुये पूजास्थलों व अन्य स्थलों की सम्पत्तियों को मुक्त कराकर दलितों को वापिस दिलाये जाने के लिए भी ‘रथयात्रायें’ निकाले जाने और ‘आंदोलन’ किये जाने का साहस किया जायेगा?
(4) कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बंगारू लक्ष्मण का अपराध क्या था और उनका राजनीतिक वनवास कब तक समाप्त होगा अथवा वह जीवन भर ही अपराध बोध से ग्रसित रहकर अपमानित बने रहेंगे? जबकि, कर्नाटक के भाजपा शासित शासन में भाजपा की वरिष्ठ नेता श्रीमती सुषमा स्वराज के विशेष आशीर्वाद प्राप्त बने हुए ‘खनन माफिया’ रेड्डी बंधुओं का बना हुआ ‘चोरी व सीनाजोरी’ वाला आतंक जगजाहिर बना हुआ है फिर भी भाजपा प्रमुखों में साहस नहीं है कि वह इन रेड्डी बंधुओं के खिलाफ प्रभावपूर्ण कार्यवाही कर सकें - आखिर क्यों?
(5) कि कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिनाकरन पर लगाये हुये भ्रष्टाचार के आरोप की सत्यता को समझे बिना ही उनको बदनाम कर उनके खिलाफ राज्यसभा में प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली के नेतृत्व में प्रस्तुत किया गया ‘महाभियोग प्रस्ताव’ क्या उचित है? क्या देश की न्यायिक व्यवस्था में मात्र दलित होने का अभिशाप झेल रहे न्यायाधीश ही ‘भ्रष्टाचारी’ है और बाकी सभी ‘शिष्टाचारी’ है?
(6) कि दलितनेत्री कुमारी मायावती के शासन समय में यू.पी. के आम दलितजन कितने प्रतिशत सुरक्षित और असुरक्षित है? और, वहां दलितों पर हो रहे आतंक व उत्पीड़न का सिलसिला कब तक थमेगा?
(7) कि ‘आरक्षण’ के नाम पर दलितों को हर समय कोसने वाले सवर्ण हिन्दुवाद के पैरोकार यह बताने का साहस करेंगे कि- देश में आजादी के समय से लेकर आज तक जितने भी आर्थिक घोटाले, खाद्य पदार्थो में मिलावट के घोटाले, निर्माण कार्यो के घोटाले, अस्पतालों में ऑपरेशन के दौरान मरीजों के पेट में रह जाने वाले ब्लेड्स के टुकड़े, रूई, कपड़े के पीस आदि के कारनामे, राजनैतिक घोटाले और अन्य विभिन्न प्रकार के राष्ट्रघाती अपराधों व घोटालों के लिए पकड़े गये अपराधियों में कितने प्रतिशत अपराधी ‘दलित समुदाय’ से हैं तथा इन पकड़े गये अपराधियों में कितने अपराधी न्यायालय से सजा पाकर जेल की सलाखों में बंद पड़े हुए हैं?
(8) कि हम पर और हमारे इस समाचार पत्र ‘‘पाक्षिक समाचार सफ़र’’ पर हमारी संकीर्ण व एकपक्षीय सोच का आरोप लगाने वाले संघ व भाजपा और बसपा के समर्थित व समर्पित बने हुए हमारे जीनगर समाजजन हमें यह भी अवगत कराये जाने की मेहरबानी करें कि- उन्होंने अपने-अपने इन संगठनों के माध्यम से अपने दलित व कमजोर बने हुए जीनगर समाज के विकास के लिए कहां-कहां पर किस-किस प्रकार के सहयोगी व रचनात्मक कार्य किये तथा समाज हित व विकास में उनकी किस-किस रूप में क्या-क्या उपलब्धियां बनी हुई हैं?
अतः संघ-भाजपा और बसपा के समर्थित व समर्पित बने हुए हे हमारे जीनगर सदस्यों! आपके इस समर्थन व समर्पण से हमें कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। लेकिन, बिना अपना आत्ममंथन किये व वास्तविकता से मुंह मोड़े हुए ही, हमको और इस समाचार पत्र ‘पाक्षिक समाचार सफ़र’ को कोसते हुए हमें हिन्दु व दलित विरोधी होने का ‘प्रमाण पत्र’ दे देना कदापि उचित नहीं है। बल्कि इस तरह की वैचारिक सोच हमारी ‘गुलामीयत’ की ही प्रतीक है जिसमें हम सच्चाई को देखकर भी जानबूझकर ‘धृतराष्ट्र’ समान बने हुए हैं। जबकि, हम स्वयं भी कांग्रेसी विचारधारा के समर्थक हैं और पूर्व में हम युवक कांग्रेस में विभिन्न पदों पर पदासीन भी रह चुके हैं। लेकिन हम कभी भी ‘दलीय अनुशासन’ के नाम पर  ‘गुलामियत’ की स्थिति में नहीं रहें हैं और आज भी हम अपने इस समाचार पत्र ‘पाक्षिक समाचार सफ़र’ के जरिये कांग्रेस की गलत नीतियों के खिलाफ अपनी क़लम का खुलकर उपयोग करते ही रहते हैं।
हम यह भी जानते हैं कि हमारे अधिकांश समाजजन कांग्रेस समर्थित व समर्पित बने हुए हैं। लेकिन, उनका भी अपने समाज हित व विकास के लिए ;कुछेक को छोड़करद्ध कोई भी उपलब्धि भरा कार्य दिखाई नहीं दे रहा हैं, सिवाय ‘नेताजी’ बने रहने के। इनमें से कई सदस्य तो अपने दल के वरिष्ठ नेताओं के साथ मात्र फोटों ख्ंिाचवा कर ही ‘आत्ममुग्ध’ बने हुए रहते हैं और हमें भी उन फोटूओं को प्रकाशन के लिए भेजते रहते हैं, जिनको हम यह संदेश भिजवा देते हैं कि वह अपनी उपलब्धियों को भी भिजवाये, मात्र फोटूओं को नहीं। लगभग ऐसी ही स्थितियां कांग्रेस, भाजपा व अन्य दलों से निर्वाचित होने वाले वार्ड पंच/पार्षद से लेकर विधायकों व मंत्रियों की रही है जो अपने-अपने कार्यकाल में समाज हित के लिए कोई भी उपलब्धि भरा कार्य नहीं कर सके हैं। जबकि समाजजनों ने उन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को समाज सदस्य होने के नाते हरसंभव मान-सम्मान प्रदान ही किया है। चूंकि, राजनीतिक दल प्रमुखों की नजर में हमारी कोई विशेष उपयोगिता महसूस नहीं हो रही है इसलिए देश की आजादी से लेकर आज तक हमारे समाज का कोई भी सदस्य ‘सांसद’ नहीं बन सका है। राजनीतिक दलों की नजर में बनी हुई हमारी यह स्थिति भी हम सभी समाजजनों विशेषकर राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय बने हुए समाज प्रतिनिधियों के लिए विचारणीय है और इसके लिए जरूरी है कि हम हमारी समाज एकता की ताकत का एकजुट होकर कुछ इस तरह से प्रदर्शन करें ताकि सभी दल-प्रमुखों को हमारे समाज के प्रति बनी हुई ‘उपेक्षा’ का ‘अहसास’ हो सके। ऐसी परिस्थितियों में, हमारा इन संघ-भाजपा और बसपा समर्थित आप समाज सदस्यों से यही विनम्र अनुरोध है कि कृपया आप, समय-समय पर अपना ‘आत्म अवलोकन’ करते रहें और हमें उक्त वर्णित आठ सवालों के जवाब दिनांक 30 दिसम्बर 2010 तक अवश्य ही भिजवाकर अपनी वैचारिक जागरूकता व सजगता का परिचय दें। अन्यथा तो, हम यही समझेंगे कि आप जैसे बौद्धिकजनों के पास समाज के लिए न तो कोई सोच है और न ही कोई विचार, यदि कुछ है तो वह सिर्फ ‘गुलामीयत’ का प्रतीक समर्थन व समर्पण ही है। धन्यवाद।

1 comment:

  1. aap savtantra patrakar hei,apko jo acha lagta hei wo likhte hei. kintu yei sach hei ki aaj kal ke netaji samaj ki jagah party ko priority dete hei, samaj ko apne swarth ke liye use karte hei,sabhi ki soch ek nahi ho sakati.lekhak ka kam likhna hei ,thopana nahi.

    ReplyDelete