Wednesday, October 27, 2010

स्मृति-शेष :: कामरेड शिवराम का असामयिक निधन

५ और २० अक्टूबर के अंक में प्रकाशित
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शिवराम के व्यक्तित्व की खूबी थी कि वे आम जीवन में सामान्य थे। लेकिन उनके पास असाधारण मेधा और संगठन क्षमता थी। मैं निजी तौर पर उनकी मौत से असहाय सा महसूस कर रहा हूँ। क्योंकि मैं जब भी फोन करता या कोई बात उन्हें कहनी होती तो उसमें उनकी बेचैनी और ममता दोनों की गरमी महसूस करता था। अचानक इंटरनेट पर फेसबुक से पता चला कि साथी शिवराम का आज (एक अक्टूबर को) निधन हो गया। मैं व्यक्तिगत तौर पर उनसे कभी नहीं मिला, लेकिन विगत 40 सालों से उनके काम के संपर्क में था। मैं उनकी रचनाओं का पाठक रहा हूँ । उनकी रचनाएं वे चाहे कविता हो, नाटक हो, निबंध हों, इन सबसे मुझे प्रेरणा मिलती रही है। मजदूरवर्ग के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए शिवराम ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक संघर्ष किया और मजदूरवर्ग व किसानों के हितों के बारे में वे बार-बार सोचते रहते थे। मैंने पिछले साल जब इंटरनेट पर ‘मुक्तिबोध सप्ताह’ का आयोजन करने का फैसला किया तो उसी सिलसिले में मेरी उनसे पहली बार बहुत लंबी बातचीत हुई। मजेदार बात यह थी कि हम दोनों एक-दूसरे के रचनाकर्म से ही परिचित थे। कुछ  महिना पहले उन्होंने वर्धमान की यात्रा का निर्णय लिया था और वे चाहते भी थे कि उस समय हमारी उनकी मुलाकात हो जाए लेकिन ऐसा हो न सका, मैं किसी काम के चक्कर में कोलकाता के  बाहर था। शिवराम ने अपने लेखन और आंदोलनकारी व्यक्तित्व के कारण राजस्थान में खासकर अपनी विशिष्ट पहचान बनायी थी और जनवादी सांस्कृतिक मूल्यों और समाजवादी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए अतुलनीय कुर्बानियां दी हैं। वे हमारे हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहेंगे। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
‘अनवरत ब्लाग’ में दिनेशजी ने उनके बारे में लिखा है- अभी शिवराम जी के घर से लौटे हैं। हम शाम को जब उन के घर पहुँचा तो घर के बाहर भीड़ लगी थी, जिनमें नगर के नामी साहित्यकार, नाट्यकर्मी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, दूरसंचार कर्मचारी और बहुत से नागरिक थे। शिवराम के बड़े पुत्र रवि कुमार (जिन्हें आप सृजन और सरोकार ब्लाग के ब्लागर के रूप में जानते हैं) आ चुके थे, सब से छोटे पुत्र पवन दो माह पूर्व ही कोटा में नया नियोजन प्राप्त कर लेने के कारण कोटा में ही थे। मंझले पुत्र शशि का समाचार था कि वह परिवार सहित ट्रेन में चढ़ चुका है और सुबह चार-पाँच बजे तक कोटा पहुँच जाएंगे। बेटी के भी दिल्ली से रवाना हो चुकने का समाचार मिल चुका था। सभी शोकाकुल थे। छोटे भाई और शायर पुरुषोत्तम ‘यकीन’ शोकाकुल हो कर पूरी तरह पस्त थे और कह रहे थे आज मैं यतीम हो गया हूँ। हम करीब दो घंटे वहाँ रहे। शिवराम अब चुपचाप लेटे थे। 
मैं जानता था, वह आवाज जिसे मैं पिछले 35 वर्षों से सुनने का अभ्यस्त हूँ अब कभी सुनाई नहीं देगी। उनकी आवाज हमेशा ऊर्जा का संचार करती थी। वैयक्तिक क्षुद्र स्वार्थों से परे हट कर मनुष्य समाज के लिए काम करने को सदैव प्रेरणा देता यह व्यक्तित्व सहज ही हमें छोड़ कर चला गया। डाक्टर झा से वहीं मुलाकात हुई। बता रहे थे कि जैसा उनका शरीर था और जिस तरह वे अनवरत काम में जुटे रहते थे, हम सोच भी नहीं सकते थे कि उन्हें इस तरह हृदयाघात हो सकता है कि वह अस्पताल तक पहुँचने के पहले ही प्राण हर ले। शिवराम दोपहर तक स्वस्थ थे। सुबह उन्होंने अपने मित्रों को टेलीफोन किए थे। कल शाम कंसुआँ की मजदूर बस्ती में एक मीटिंग को संबोधित किया था। दोपहर भोजन के उपरांत उन्होंने असहज महसूस किया और सामान्य उपचार को नाकाफी महसूस कर स्वयं ही पत्नी और मकान में रहने वाले एक विद्यार्थी को साथ ले कर अस्पताल पहुँचे थे। अस्पताल में जाकर मूर्छित हुए तो फिर चिकित्सकों का कोई बस नहीं चला। उनकी हृदयगति सदैव के लिए थम गई थी। मात्र 61 वर्ष की उम्र में इस तरह गए कि अनेक लोग स्वयं को अनाथ समझने लगे।
शिवराम जी  का जन्म 23 दिसंबर 1949 को राजस्थान के करौली नगर में हुआ था। पिता के गांव गढ़ी बांदुवा, करौली और अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। फिर वे दूर संचार विभाग में तकनीशियन के पद पर नियुक्त हुए। दो वर्ष पूर्व ही वे सेवा निवृत्त हुए थे। वे जीवन के हर क्षेत्र में सक्रिय रहे। अपने विभाग में वे कर्मचारियों के निर्विवाद नेता रहे। वे एक अच्छे संगठनकर्ता थे। प्रारंभ में वे स्वामी विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे। लेकिन उस मार्ग पर उन्हें समाज में परिवर्तन की गुंजाइश दिखाई नहीं दी। बाद में वे मार्क्सवाद के संपर्क में आए, जिसे उन्होंने एक ऐसे दर्शन के रूप में पाया जो कि दुनिया और प्रत्येक परिघटना की सही और सच्ची व्याख्या ही नहीं करता था, बल्कि यह भी बताता था कि समाज कैसे बदलता है। वे समाज में परिवर्तन के काम में जुट गए। उन्होंने अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने के लिए नाटक और विशेष रूप से नुक्कड़ नाटक को सबसे उत्तम साधन माना। वे नुक्कड़ नाटक लिखने और आसपास के लोगों को जुटा कर उन का मंचन करने लगे। उन का नाटक ‘जनता पागल हो गई है’ हिन्दी के प्रारंभिक नुक्कड़ नाटकों में एक है। यह हिन्दी का सर्वाधिक मंचित नाटक है। इस नाटक और शिवराम के अन्य कुछ नाटक अन्य भाषाओं में अनुदित किए जाकर भी खेले गए। वे नाट्य लेखक ही नहीं थे, अपितु लगातार उन के मंचन करते हुए एक कुशल निर्देशक और अभिनेता भी हो चुके थे। वे पिछले 33 वर्षों से हिन्दी की महत्वपूर्ण साहित्यिक लघु पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ का संपादन भी कर रहे थे।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सांगठनिक काम के महत्व को वे अच्छी तरह जानते थे। आरंभ में प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे। जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से वे भी एक थे। लेकिन जल्दी ही सैद्धान्तिक मतभेद के कारण वे अलग हुए और अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा ‘विकल्प’ के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वर्तमान में वे ‘विकल्प’ के महासचिव थे। मूलतः सृजनधर्मी होते हुए भी संघर्षशील जन संगठनों के निर्माण को वे समाज परिवर्तन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे और संगठनों के निर्माण का कोई भी अवसर हाथ से न जाने देते थे। वे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ प्रभावशाली वक्ता भी थे। लोग किसी भी सभा में उन्हें सुनने के लिए रुके रहते थे। एक अध्येता और चिंतक थे वे। श्रमिक-कर्मचारी आंदोलनों में स्थानीय स्तर से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न नेतृत्वकारी दायित्वों का उन्होंने निर्वहन किया। अनेक महत्वपूर्ण आंदोलनों का उन्होंने नेतृत्व किया। दूर संचार विभाग से सेवानिवृत्त होने के उपरान्त उन्होंने भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड एमसीपीआईयू) की सदस्यता ग्रहण की और शीघ्र ही वे पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य हो गए।
उनकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं - नाटक संग्रहः जनता पागल हो गई है, घुसपैठिए, दुलारी की माँ, एक गाँव की कहानी, राधेया की कहानी, गटक चूरमा, सेज पर विवेचनात्मक पुस्तकः सूली ऊपर सेज, नाट्य रूपांतर संग्रहः पुनर्नव, कविता संग्रहः माटी मुळलकेगी एक दिन, कुछ तो हाथ गहो, और, खुद साधो पतवार। दिवंगत शिवराम जी का अंतिम संस्कार 2 अक्टूबर सुबह कोटा में किशोरपुरा मुक्तिधाम में सम्पन्न होगा। प्रातःकाल आठ बजे अंतिम यात्रा उनके निवास से आरंभ होगी और ट्रेड यूनियन कार्यालय छावनी जाएगी। जहाँ उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनों के लिए कुछ देर रखा जाएगा। उसके उपरांत सर्वहारा वर्ग के एक यौद्धा और सेनापति के सम्मान के साथ अंतिम यात्रा किशोरपुरा मुक्तिधाम पहुँचेगी, जहाँ उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न होगा। 
शिवरामजी की काव्यात्मक ‘अनुभवी सीख’: ‘‘एक चुप्पी हजार बलाओं को टालती है, चुप रहना भी सीख, सच बोलने का ठेका, तूने ही नहीं ले रखा। / दुनिया के फटे में टांग अड़ाने की, क्या पड़ी है तुझे, मीन-मेख मत निकाल, जैसे सब निकाल रहे हैं, तू भी अपना काम निकाल, अब जैसा भी है, यहाँ का तो यही दस्तूर है, जो हुजूर को पसंद आए वही हूर है। / नैतिकता-फैतिकता का चक्कर छोड़, सब चरित्रवान भूखों मरते हैं, कविता-कहानी सब व्यर्थ है, कोई धंधा पकड़, एक के दो - दो के चार बनाना सीख, सिद्धांत और आदर्श नहीं चलते यहाँ, यह व्यवहार की दुनिया है, व्यावहारिकता सीख, अपनी जेब में चार पैसे कैसे आएँ, इस पर नजर रख। / किसी बड़े आदमी की दुम पकड़, तू भी किसी तरह बड़ा आदमी बन, फिर तेरे भी दुम होगी, दुमदार होगा तो दमदार भी होगा, दुम होगी तो दुम उठाने वाले भी होंगे, रुतबा होगा, धन-धरती, कार-कोठी सब होगा। / ऐरों-गैरों को मुहँ मत लगा, जैसों में उठेगा बैठेगा, वैसा ही तो बनेगा, जाजम पर नहीं तो भले ही जूतियों में ही बैठ, पर बड़े लोगों में उठ-बैठ। / ये मूँछों पर ताव देना, चेहरे पर ठसक और चाल में अकड़, अच्छी बात नहीं है, रीढ़ की हड्डी और गरदन की पेशियों को, ढीला रखने का अभ्यास कर। / मतलब पड़ने पर गधे को भी, बाप बनाना पड़ता है, गधों को बाप बनाना सीख। / यहाँ खड़ा-खड़ा, मेरा मुहँ क्या देख रहा है, समय खराब मत कर, शेयर मार्केट को समझ, घोटालों की टेकनीक पकड़, चंदे और कमीशन का गणित सीख। / कुछ भी कर, कैसे भी कर, सौ बातों की बात यही है, कि अपना घर भर, हिम्मत और सूझ-बूझ से काम ले, और- भगवान पर भरोसा रख।’’
- लेखक जगदीश्वर चतुर्वेदी जाने माने मार्क्सवादी साहित्यकार और विचारक  हैं. इस समय कोलकाता विश्व विद्यालय में प्रोफेसर है। 
संपर्कः jagadishwar_chaturvedi@yahoo.co.in 

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