Monday, October 11, 2010

मीडिया-चिंतन: सर्कुलेशन का नाटक - बड़े अखबारों की साजिश छोटे अखबारों के लिए बनी हुई सरकारी विज्ञापनों की ऑक्सीजन नली को काटने की तैयारी !

20 सितम्बर 2010 के अंक में प्रकाशित
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(‘‘सर्कुलेशन की जांच बड़े अखबारों से शुरू हो - सरकारी विज्ञापनों में 50 प्रतिशत के भागीदार छोटे अखबार बने आंख की किरकिरी - डीपीआर छोटे अखबारों के हितैषी हैं, दुश्मन नहीं’’) भारतीय ग्रामीण, पढ़े-लिखे और भावुक लोगों की खबरें हम आये दिन छापते हैं कि- रोड़ एक्सीडेन्ट में ग्रामीणों ने नेशनल हाइवे जाम किया, साम्प्रदायिक झगड़े में समुदाय विशेष और पुलिस में लाठीभाटा-जंग, प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज आदि-आदि। ये सभी खबरें बताती है कि एक्सीडेन्ट करने वाले, साम्प्रदायिक दंगे को भड़काने वाले और मूल समस्या से समाधान के लिए प्रदर्शन करने वाले अपने लक्ष्य से भटक कर पुलिस से ‘भिड़’ जाते हैं और घटना के जिम्मेदार मूल अपराधी बच जाते हैं। ऐसी ही एक ‘रिहर्सल’ राजस्थान के छोटे समाचार पत्रों को सरकारी विज्ञापनों के नाम से मिल रही ‘आक्सीजन नली’ को काटने के प्रयासों में की जा रही है। जिसमें बड़े समाचार पत्रों द्वारा ‘बिना फ्रन्ट खोले’ मध्यम श्रेणी के अखबारों को विज्ञापन के रास्ते से हटाने के लिए छोटे अखबारों के हाथों में कल्हाड़ियां थमा दी है और हम सभी लक्ष्य से भटक कर अपने हाथों में पकड़ी हुई कुल्हाड़ी से अपने ही पांव काटने में लग चुके हैं। बीकानेर के समाचार पत्रों के सर्कुलेशन और मुख्यमंत्री के विश्वसनीय सम्पादक के समाचार पत्र को सरकारी विभागों से विज्ञापन देने हेतु ‘डीपीआर’ से जारी हुआ ‘अनुरोध पत्र’ इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी महत्वपूर्ण इन खबरों के पीछे की भावनाएं और लक्ष्य है। बीकानेर के समाचार पत्रों के सर्कुलेशन झूठे साबित होने पर राज्य सरकार से राज्य के सभी समाचार पत्रों की असलियत की पुनः जांच की मांग हम जैसे छोटे समाचार पत्रों में ही उठवाई जायेगी और फिर धीरे-धीरे राज्य के सम्भाग व जिलों से प्रकाशित होने वाले चार पेजा व आठ पेजा के समाचार पत्र इन सरकारी विज्ञापनों से दूर ही खड़े नजर आयेंगे। सरकारी विज्ञापनों की कुल सालाना राशि में से 50 प्रतिशत छोटे-मध्यम और विशेषांक प्रकाशित करने वाले अखबारों को मिल जाती है। इसलिए राज्य के बड़े अखबारों की आंख की किरकिरी बन गये हैं छोटे और मध्यम अखबार। बड़े अखबारों की आंखों की इस किरकिरी को साफ करने के षडयंत्र में छोटे अखबारों को ही आपस में एक-दूसरे के खिलाफ उकसाकर लड़वाना शुरू करवा दिया है और बड़े अखबार बिना सामने आये उनके हितों के लिए लड़ रहे छुट भैंय्याओं की पीठ थपथपा रहे हैं।
जबकि छोटे और मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र भी चाहते हैं कि झंूठे सर्कुलेशन बताकर बड़े विज्ञापन लेने की परम्परा बंद हो। लेकिन यह जांच नीचे यानि छोटे व मध्यम श्रेणी से नहीं होकर लाखों का सर्कुलेशन और करोड़ों की पाठक संख्या बताने वाले बड़े अखबारों से शुरू की जाये। सर्कुलेशन की यह जांच केवल एक दिन ही नहीं, बल्कि ‘शुद्ध के लिए युद्ध’ अभियान की तरह रोज रात को एक कमेटी द्वारा हो। जिसमें डीपीआर के साथ एसीबी, लघु व मध्यम श्रेणी के समाचार पत्रों के प्रतिनिधि सहित पांच सदस्य हों। यह कमेटी रोज रात को बड़े अखबारों की मशीनों पर ‘काउन्टींग मशीन’ को तब तक चेक करें, जब तक कि पूरी छपाई खत्म नहीं हो जाती। तभी बड़े स्तर पर चल रहे इस सर्कुलेशन के घोटालों पर बंधी हुई परतें खुल सकेंगी और तभी नैतिकता का पाठ पढ़ाकर अनैतिक ड्डत्य करने वाले चेहरों से नकाब भी उतर सकेगी। इसके लिए जन सम्पर्क अधिकारी, डीपीआर और जन सम्पर्क विभाग के बेकसूर अधिकारियों के खिलाफ मुकदमें कर सरकारी विज्ञापनों को शत-प्रतिशत हड़पने की साजिश रचने वालों के लाखों के सर्कुलेशन के दावों को, एक घंटे में 30 हजार कॉपी प्रिन्ट की गति से पांच लाख के लिए लगने वाले 16 घंटों को, रात एक बजे से शुरू कर जांचा जाये तो ही ये सभी दावे झूठ के पुलन्दे साबित होंगे। लेकिन, छोटे एवं मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र आपस में ही एक दूसरे के झूंठे सर्कुलेशन बताकर, जाने-अनजाने में, बड़े अखबारों के हितों को ही सुरक्षित करने में सहयोग कर रहे हैं।
इन हालत में चार पेजा और आठ पेजा अखबारों को डीपीआर के अधिकारियों के समर्थन में खुलकर सामने आना चाहिये। जो अधिकारी 26 जनवरी, 15 अगस्त को मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत अनुरोध कर छोटे व मध्यम श्रेणी साप्ताहिक व पाक्षिक सभी के लिए विज्ञापन जारी करवाते हों, वह डीपीआर छोटे अखबारों का दुश्मन कैसे हो सकता है? - सोचने की बात है।
अतः बीकानेर से शुरू की गई सर्कुलेशन की इस लड़ाई को राज्य के सभी समाचार पत्रों को जांच-परख कर, इस पर चिन्तन-मनन कर और आपस में विचार-विमर्श कर इसे रोकना होगा। तथा- इस लड़ाई के दूसरे पहलू बड़े अखबारों के सर्कुलेशन दावों की जांच के लिए राज्य स्तर पर अभियान चलाकर बड़े अखबारों के चेहरों पर ढकी हुई तथाकथित ‘नैतिकता’ की नकाब को हटाना होगा। और, छोटे अखबारों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए बड़े अखबारों द्वारा चलाये जा रहे सर्कुलेशन की इस साजिश से बचकर ‘पलटवार’ करने के लिए एकजुट होना होगा।

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