Tuesday, October 26, 2010

गोरखालैंड आंदोलन : सत्ता-शतरंज और सियासत का खेल !

Publish on ---- 5th - 20th Oct. 2010 "Samachar Safar Edition"
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गोर्खालीग नेता मदन तमांग की नृशंस हत्या की जांच कर रही सीआईडी टीम ने 30 अगस्त को तीस अभियुक्तों के खिलाफ दार्जिलिंग के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में 519 पृष्ठों का भारी भरकम आरोप पत्र दाखिल कर दिया। सीआईडी द्ारा दाखिल आरोप पत्र में श्री तमांग की हत्या में गोजमुमो की संलिप्ता की बात कही गई है। आरोप पत्र में गोजमुमो के महिला संगठन की दो वरिष्ठ सदस्याओं के अतिरिक्त 13 नये चेहरे भी शामिल हैं। साथ ही गोजमुमो केंद्रीय कमेटी के वरिष्ठ सदस्य निकल तमांग को भगोड़ा घोषित किया गया है। दायर आरोप पत्र को लेकर पहाड़ व समतल के लोगों में एक संशय बना हुआ है और लग रहा है कि सीआईडी टीम द्वारा दाखिल इस आरोप पत्र में कई विरोधाभास हैं। कानून के जानकारों का भी यह मानना है कि खासकर तथ्यों में हेरफेर के कारण ही ऐसे विरोधाभास प्रकट होते हैं जो सहज ही समझे जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि गत् 22 अगस्त को सीआईडी-हिरासत से मदन तमांग हत्याकांड का अहम आरोपी निकल तमांग अचानक रहस्यमय तरीके से अदृश्य हो गया। उसे लेकर जो कहानी सामने आई अथवा प्रचारित की गयी उससे सीआईडी की कार्यपद्धति व विश्वसनीयता पर भी लोगों ने सवाल खड़े किये हैं। कारण कि जिन परिस्थितियों में सीआईडी टीम उससे पूछताछ कर रही थी और जिस तरह के कड़े सुरक्षा घेरे में सुकना के पिंटेल विलेज में उसे रखा गया था, उस दुर्ग को भेदकर निकलना नामुमकिन है। फिर भी वह वहां से निकला। 
जाहिर है यह घटना किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करती है। सबसे चकित करने वाली बात तो यह है कि जिनकी विश्वनीयता पर जनता सवाल खड़े कर रही है, वे ही इसकी जांच कर रहे हैं। इस मामले में अचरज की बात यह भी है कि प्रधाननगर थाना में निकल तमांग के खिलाफ एक और मुकदमा दायर हुआ, मगर सीआईडी-टीम की कर्तव्यहीनता के खिलाफ किसी पर कोई मुकदमा दायर नहीं हुआ। सिर्फ, घटना पर खेद प्रकट करते हुए दार्जिलिंग के जिला अधीक्षक देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि निकल तमांग को पिंटेल विलेज में रखना उचित नहीं था। कानूनन तो निकल तमांग को उस रात प्रधान नगर थाना के लाक अप में होना चाहिए था, जबकि उसके लिए तैनात विशेष सुरक्षा टोली तक को पिंटेल विलेज से हटा दिया गया। सीआईडी के एडीजी राज कनौजिया ने कहा कि गोर्खालीग नेता मदन तमांग की हत्या के मामले में निकल तमांग को पिंटेल विलेज में रखना अनुचित नहीं कहा जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि निकल तमांग ने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी हैं जिससे कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे और उन्हें शीघ्र ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा। उनका इशारा बिल्कुल साफ था। वहीं, सीआईडी टीम से छनकर जो सूचनाएं बाहर आ रही थीं उसके मुताबिक गोजमुमो के महासचिव रोशन गिरि के खिलाफ भी चार्जशीट तैयार की जा रही थी। साथ ही उनकी गिरफ्तारी की सुगबुगाहट भी पहाड़ पर होने लगी थी। लेकिन कतिपय कारणों से गोजमुमो अध्यक्ष बिमल गुरुंग पर हाथ डालने की मंशा सीआईडी की नहीं रही। गोजमुमो भारी मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गया था। 
राज्य सरकार तथा गोजमुमो के बीच अंतरिम प्राधिकरण के गठन को लेकर काफी पहले ही सहमति बन चुकी थी। दार्जिलिंग से भाजपा के सांसद जसवंत सिंह भी अंतरिम प्रशासनिक प्राधिकरण के पथ को सुगम बनाने के लिए गुप्त रूप से अपना काम कर रहे थे। लेकिन सीमांकन को लेकर थोड़ी अड़चन रह गयी थी। नगर विकास मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य भी इससे पूरी तरह सिर्फ वाकिफ ही नहीं, बल्कि इसमें उनकी सर्वाधिक अहम् भूमिका रही है। मदन तमांग की हत्या को लेकर गोजमुमो के प्रथम कतार के नेताओं पर एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता जा रहा था। कानून का शिकंजा उन पर जैसे-जैसे कसना शुरू हुआ, उनके लंगोट ढीले पड़ गये। सीमांकन को लेकर उनकी जो अकड़ रही, वह भी नरम पड़ने लगी। अपने बचाव में दो कदम पीछे हटना ही उन्होंने मुनासिब समझा। यह बात उन्हें पूरी तरह समझ में आ गयी कि अंतरिम प्राधिकरण के गठन के बाद वे पहाड़ के भाग्य विधाता बन जायेंगे। वहां की कानून-व्यवस्था को वे अपने हिसाब से संचालित करेंगे और खुद तथा अपने लोगों को, जो मदन तमांग की हत्या को लेकर विशेष तरह का दबाव झेल रहे हैं, राहत दिला पायेंगे। तमांग हत्या के मामले में सीआईडी गोजमुमो के द्वितीय व तृतीय कतार के जिन नेताओं को कानून के कठघरे में खड़ा करना चाह रही है, उन्हें भी बाद में वे बचा लेंगे। 17 अगस्त को दिल्ली में अंतरिम प्राधिकरण के सवाल पर राज्य सरकार, केंद्र सरकार तथा गोजमुमो के बीच प्रशासनिक स्तर पर त्रिपक्षीय बैठक होनी थी और उसके एक रोज पहले ही अर्थात् 16 अगस्त को पुलिस ने निकल तमांग को उसके दार्जिलिंग के कैजले स्थित मकान से गिरफ्तार कर लिया। उसकी गिरफ्तारी का कहीं किसी ने प्रतिरोध नहीं किया और सबसे रहस्य की बात तो यह हुई कि गोजमुमो नेताओं ने कानून के प्रति सम्मान प्रकट किया। 
16 अगस्त को जब निकल तमांग को दार्जिलिंग के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में भारी सुरक्षा के बीच पेश किया गया, तब निकल सहज दिख रहा था। उसने सहज भाव से अपने लोगों से अभिवादन-विनिमय किया। 17 अगस्त के विभिन्न अखबारों में छपे उसके तनाव रहित चित्र को देखकर काफी कुछ समझा जा सकता है। ऐसा लगता है कि निकल की गिरफ्तारी में भी उसकी सहमति रही होगी और उसके पिंटेल विलेज से अदृश्य होने में सीआईडी टीम तथा पुलिस के एकांश का सहयोग रहा होगा। हालांकि यह जांच का विषय है और मामला अदालत में विचारार्थ है, इसलिए इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कह सकते। प्रारंभ से ही सब कुछ बड़े ही रहस्यमय ढंग से हो रहा है। मदन तमांग की हत्या को ही लेें, अपनी हत्या से 3-4 रोज पहले ही श्री तमांग ने तत्कालीन उत्तर बंगाल के आईजी के.एल. टामटा से बात की थी। संभावित हमले के मद्देनजर श्री तमांग ने अपनी सभा स्थगित करने का मन भी बना लिया था। लेकिन, टामटा ने उन्हें सभा करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया। और बाद में जिस तरह से घटना सामने आयी उससे ऐसा लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति है जो इन घटनाओं को संचालित कर रही है। इन घटनाओं में सत्ता और कालेधन की भूमिका को भी हम नजरंदाज नहीं कर सकते। 
उल्लेखनीय है कि सीआईडी हिरासत से निकल तमांग के अदृश्य होने के बाद गोजमुमो ने कहा, सीआईडी तथा पुलिस ने मिलकर निकल की हत्या कर दी है। अगर निकल जिंदा है तो सीआईडी उसे अदालत में पेश करे। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि निकल से मिले जिन तथ्यों के आधार पर एडीजी राज कनौजिया ने कहा था कि- अखिल भारतीय गोर्खालीग नेता की हत्या में शामिल कुछ बड़े चेहरे बेनकाब होंगे, हम जल्द ही उन्हें गिरफ्तार करेंगे, आरोपी निकल ने फरारी से पहले कई राज उगले हैं, उन तथ्यों के आधार पर शीघ्र कार्रवाई शुरू की जायेगी - पर यह सवाल उठना अब लाजिमी है कि निकल तमांग ने मदन तमांग की हत्या के कौन से राज उगले? किन बड़े चेहरों को बेनकाब करने की बात राज कनौजिया ने कही? इशारे-इशारों में उन्होंने जो संकेत दिये, क्या वह गोजमुमो के कुछ कद्दावर नेताओं पर दबाब बढ़ाने के लिए थे या सचमुच उन पर कार्रवाई की जानी थी? - यह सवाल अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। मोर्चा के जिन बड़े नेताओं के नाम एफआईआर मंे दर्ज हैं, सीआईडी ने अब तक उनसे पूछताछ नहीं की है और न ही उन्हें गिरफ्तार ही किया है। वहीं उन नेताओं ने भी अपनी अग्रिम जमानत नहीं ली है। साथ ही सीआईडी द्वारा दायर चार्जशीट में उनके नाम भी नहीं हैं। ऐसे में जिन बड़े चेहरों को बेनकाब करने की बात एडीजी राज कनौजिया कह रहे हैं, वह बात समझ से परे है। इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सीआईडी को उस एफआईआर पर ही भरोसा नहीं है जिसके आधार पर यह मुकदमा दायर हुआ है। जबकि आम मुकदमों में कानूनन ऐसा नहीं देखा जाता। अभियुक्त को अदालत में हाजिर होकर जमानत लेनी ही पड़ती है। आम सभी मुकदमों में पुलिस अथवा सीआईडी ऐसा नहीं करती जैसा कि शुरू से ही इस मुकदमे में देखा जा रहा है।
 दायर चार्जशीट में यह बताया गया है कि मई के प्रथम सप्ताह में गोजमुमो के सिंगमारी कार्यालय में मदन तमांग की हत्या की साजिश रची गयी। जिसमें आलोक कांत, मणि थुलुंग (युवा मोर्चा अध्यक्ष), पुरन थामी (युवा मोर्चा महासचिव), किस्मत क्षोत्री (विद्यार्थी मोर्चा अध्यक्ष), केशव राज पोखरेल (अध्यक्ष विद्यार्थी मोर्चा), दिनेश गुरुंग (अध्यक्ष टाउन कमेटी), तेनजिंग खोंबोचे (पूर्व पार्षद, गोरामुमो), बबिता गांगुली और सोना शेरपा (नारी मोर्चा सदस्य) शामिल रहे। हत्या के रोज इन्हें हत्या स्थल पर देखा भी गया। हत्या के रोज सबसे पहले मदन तमांग के सिर पर पत्थर से वार किया गया। इसके बाद दिनेश सूब्बा उर्फ कैला ने धारदार हथियार से उनका गला काट कर हत्या कर दी। सीआईडी का यह तर्क भी गले नहीं उतरता कि इतनी महत्वपूर्ण बैठक की सूचना किसी बड़े नेता को नहीं थी। क्या किसी वरिष्ठ नेता की सहमति के बिना द्वितीय कतार के नेताओं के लिए इतना बड़ा फैसला लेना संभव था? अभी तक हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद नहीं हुआ है और न ही पुलिस मुख्य हत्यारे तक पहुंच पायी है। 
वहीं, बिना किसी हील-हवाल ही गोजमुमो के वरिष्ठ नेताओं का हत्या के आरोप से बरी हो जाना, सीआईडी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। साथ ही भारी भरकम सुरक्षा के बीच से निकल तमांग का अदृश्य हो जाना भी सीआईडी की कार्यपद्धति पर संदेह प्रकट करता है। पिंटेल विलेज से निकल के अदृश्य होने के बाद भी फोन पर गोजमुमो के नेताओं के निर्देश निकल तमांग को मिलते रहे और वह उन निर्देशों का पालन भी करता रहा। सीआईडी के लिए यह सबसे शर्मनाक बात है कि आरोपी उसके करीब ही रहा और वह उसे पकड़ नहीं पायी। ये तमाम चीजें सीआईडी तथा राज्य सरकार की खस्ता हालत को ही दर्शाती हैं। संभावना तो यह भी व्यक्त की जा रही है कि जो काम इतने दिनों के बाद जिला-प्रशासन नहीं कर पाया, वह गोजमुमो के नव गठित ‘खोजी दस्ता’ की मदद से अब शीघ्र ही पूरा कर लिया जायेगा। अंत में हम आपको यह बता दें कि गोजमुमो नेता 7 अगस्त कोे होने वाली त्रिपक्षीय वार्ता में अगर अंतरिम सेट अप पर सहमत न हुए तो अतिरिक्त आरोप पत्र ;ैनचचसलउमदजंतल ब्ींतहमेीममजद्ध में कई कद्दावर नेताओं के नाम जुड़ जायेंगे। सत्ता-शतरंज और सियासत के खेल रहे इस खेल को हमारे नेता यह नहीं समझें कि जनता मतिमंद है, जबकि सच्चाई यह है कि जनता इस खेल को भलीभांति समझ रही है।
- संपादक तिस्ता - हिमालय/मुक्तधारा प्रेस एण्ड पब्लिकेशन्स, गुरुंगनगर, सिलीगुड़ी-3  मो0ः 094340-48163 

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